हिमालय की गोद मे बसे और प्रकृति का अनुपम उपहार लिए स्वर्ग से भी सुन्दर, भारत की धरा पर स्थित (Char Dham Yatra) देवभूमि उत्तराखंड जहां पर तीर्थाटन और पर्यटन करने से दिव्य आनंद की अनुभूति होती है। देवभूमि की अलौकिक और आध्यात्मिक वातावरण से मन को शांति मिलती है और ह्रदय परमात्मा से जुड़ता है।
चारधाम यात्रा 2025
चारधाम यात्रा पर आये हुए पर्यटकों को सिर्फ यही नहीं बल्कि भारतवर्ष के विभिन्न प्रदेशों से आये हुए आंगतुकों की लोक संस्कृति,व्यव्हार, भाषा, आस्था और प्रेम के बेमिशाल संगम की झलक देखने को मिलती है। जब आप इस यात्रा को आएंगे तो प्रकृति के अनेकों मनोहारी रंगों से और यहां की सनातनी संस्कृति से अपनापन का हृदयंगम होता है।
ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों की गगनचुम्बी शिखर, हरियाली, हिमाच्छादित चोटियां, ताल और तल्लैया, घाट और घाटियां जिससे होकर बहती ठंढी – ठंडी शीतली बयार आपको मंत्रमुग्ध कर देगी। यहां के हवाओं में मिलेगी आपको प्रादेशिक कर्णप्रिय मधुर बोलियां, और पारम्परिक व्यंजनों का स्वाद।
झर-झर गिरता झरनों का पानी कल-कल कर बहती जल की धाराएं ये सभी आपकी चारधाम यात्रा मे चारचांद लगाने के लिए तैयार हैं, ताकि आपकी यादें स्वर्णिम और अविस्मरणीय हो जाएँ। आप जब भी इस यात्रा को आएं तो समय की पाबन्दी ना रखें। कम से कम देवभूमि उत्तराखंड के लिए एक सप्ताह का समय तो अवश्य दें।
अगर आप Char Dham Yatra को इच्छुक हैं, तो इस प्रवास की अवधी को दो सप्ताह से कम न रखें। इससे उत्तराखंड का प्रवास आपके लिए और भी यादगार बन जायेगा। तो आइये –
आज के इस आर्टिकल मे हम चारधाम के मानस यात्रा पर चलते हैं, और जानते हैं, कि Char Dham Yatra क्यों जाएँ,कहाँ- कहाँ घूमें, उत्तराखंड की संस्कृति वहाँ की अनोखी परम्परा के अद्वितीय दर्शन कैसे करें, राजाजी टाइगर रिजर्व, और हरिद्वार से जुड़े बहुत कुछ रोचक जनकारियाँ।
Char Dham Yatra in Hindi
Char Dham Yatra की शुरुआत हरि के द्वार, हरिद्वार से शुरू होती है। हरिद्वार एक ऐसा आध्यात्मिक केंद्र है, जहां हिमालय की गोद से निकलकर गंगा भारतवर्ष की पावन धरा को छुती है। यदि आप इस पतित पावनी गंगा पहुँच चुके हैं, तो एक डुबकी लगाना तो बनता है। इसी हरिद्वार मे बसा है, एक ऐसा शांत और स्वर्णिम परिवेश जिसे गायत्री तीर्थ शांतिकुंज कहते हैं।
यहां पर माँ गायत्री की विशेष अनुकम्पा रही है, वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य और वंदनीया माताजी श्रीमती भगवती देवी शर्मा की तपस्थली है। उन्ही के द्वारा संचालित और प्रसारित देश विदेश के लाखों परिव्राजकों के निस्वार्थ भाव से इस मिशन मे अपनी सेवाएँ दे रहे हैं।
इस शांतिकुंज मे ब्रह्मवर्चस शोध संसथान, देव संस्कृति विश्वविद्यालय, तारामंडल, अखंड ज्योत, अखिल विश्व गायत्री परिवार का विश्व्यापि मिशन देखते ही बनता है। इस शांत वातावरण को देखकर आपको यहां से लौटने का मन नहीं करेगा। हरिद्वार से 30 किलोमीटर की दुरी पर तीर्थ नगरी ऋषिकेश है। यहीं से Char Dham Yatra के लिए प्रथम कदम पड़ते हैं।
यहां के दर्शनीय स्थलों मे राम झूला, लक्ष्मण झूला, त्रिवेणीघाट, गीता भवन, भारत मंदिर और स्वर्गाश्रम खास अनुभूति देने वाले आध्यात्मिक केंद्र हैं। यहीं पर आपके दुर्लभ दर्शन होंगे ध्यान योग के प्रणेता महर्षि महेश योगी की चौरासी कुटी।
इस कुटी की वास्तुकला और शिल्पकला के अद्भुत नमूने आपका मन मोह लेंगे। बेशक, ध्यान, योग और साधना के लिए इससे बेहतर स्थान और कोई नहीं हो सकता।
यमुनोत्री धाम मंदिर व प्राकृतिक दृश्य
चारधाम यात्रा का प्रथम तीर्थ यमुनोत्री को कहा जाता है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित चम्बा घाटी और धराशु घाटी होते हुए लगभग 170 किलोमीटर की यात्रा पूरी करके यमुनोत्री पहुंचा जाता है।
यमुना नदी के तट पर बसे हुए गाँव और आसपास के इलाकों में बहुत धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल देखने को मिलेंगे जैसे कि लाखामंडल, गंगनानी, तिलाड़ी मैदान, गुलाबकांठा इन स्थलों के दर्शन करना न भूलें। यहीं पर जमदग्नि ऋषि की तपस्थली भी है।
गुलाबकांठा मे समुद्रतल से 12000 फिट की ऊंचाई पर स्थित है, असीम आनंद देने वाला बुग्याल, जो की बर्फ की चादर ओढ़े गगनचुम्बी शिखरों के बीच अद्भुत दिखाई देते हैं। (हिमशिखरों की तलहटी में जहाँ टिम्बर रेखा (यानी पेडों की पंक्तियाँ) समाप्त हो जाती हैं, वहाँ से हरे मखमली घास के मैदान आरम्भ होने लगते हैं।
आमतौर पर ये 9 से 10 हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित होते हैं। गढ़वाल हिमालय में इन मैदानों को बुग्याल कहा जाता है।
गंगोत्री धाम व प्राकृतिक सौन्दर्य यात्रा
उत्तरकाशी जिले मे स्थित यमुनोत्री से 100 किलोमीटर की दुरी पर है, गंगोत्री। जिसे प्रकृति और कुदरत के करिश्मे ने करिश्माई तरीके से अपनी नेमतें बिखेरी है। ऐसा लगता है, मानो जैसे मुक्तहस्त होकर सौंदर्य के अद्भुत छटा की बरसात की हो।
हिमालय की हिम से आच्छादित चोटियां ऐसी लगती है- जैसे “पास बुलाती है, मगर लौटने का नहीं” यहॉँ से 19 किलोमीटर की दुरी पर भागीरथी बहती है, जहां से गंगा का उद्गम है, गोमुख ग्लेशियर। गंगोत्री से 30 किलोमीटर की दुरी पर मां गंगा का शीतकालीन प्रवेश क्षेत्र है, मार्कण्डेयपुरी।
इससे आगे 9 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है, जाह्नवी और भागीरथी नदी का संगम। इसके अतिरिक्त गंगोत्री क्षेत्र मे भैरों घाटी, केदारताल, नंदनवन, चीडबासा और भोजबासा है। ये सभी ऐसे मनोहारी और रमणीय स्थल हैं जहां से आपको लौटने का मन नहीं करेगा।
गर्तांग्ली का अद्भुत और उत्कट रोमांच
गर्तांग्ली, जो की चट्टान को काटकर लकड़ी से बनाया गया सीढ़ीनुमा मार्ग है। यह जगह गंगोत्री से 12 किलोमीटर की दुरी पर लंका मे स्थित है। इसे 17वीं शताब्दी मे पेशावर के पठानों के द्वारा बनाया गया था।
1962 के पहले इसका उपयोग भारत और तिब्बत पहुँचने के लिए एक मात्र व्यापारिक मार्ग के तौर पर किया जाता था। यहां के बाद आगे बढ़ने से चीन की सीमा शुरू हो जाती है।
केदारनाथ धाम मंदिर यात्रा
Char Dham Yatra के दौरान आपने गौरीकुंड का नाम तो सुना ही होगा इस पवित्र कुंड तक पहुँचने के लिए दुर्गम मार्गों का सामना करना पड़ता है। यहाँ पर गाड़ियां का आवागमन संभव नहीं है, सिर्फ पैदल यात्रा ही हो सकती है। आपको तो याद ही होगा – चौराबाड़ी ताल, यह वही झील है, जो जून 2013 मे केदारघाटी की तबाही का कारण बनी थी।
गौरीकुंड से आगे 8 किलोमीटर की दुरी पर लगभग साढ़े तेरह हजार फीट की ऊंचाई पर वासुकि ताल है। यह बेहद खतरनाक ट्रैक माना जाता है। ये वही घाटियाँ है, जहां पर दुनिया की अति दुर्लभ पुष्प वाटिका है और देव् पुष्प ब्रह्मकमल के फूल खिलते हैं।
यह पुष्प इतना अद्भुत है, कि साल भर मे एक बार मात्र तीन से चार घंटे के लिए खिलता है। यहां से लौटते वक्त सोनप्रयाग से 13 किलोमीटर की दुरी पर स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। इसकी मान्यता है, की यहीं पर भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था।
भैरवनाथ मंदिर में नरेंद्र मोदी ध्यान लगाते हुए
ध्यान, योग और साधना के लिए अति उत्तम जगह है, भैरवनाथ मंदिर। केदारनाथ के ऊपर पहाड़ों के शिखर पर स्थित यह वही जगह है, जहां पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ध्यान लगाया था। यहीं पर मन्दाकिनी नदी के दूसरी ओर दुग्धगंगा के पास रूद्र गुफा है, इसके दर्शन करना न भूलें।
इसी के आसपास है, उखीमठ पंचगद्दी, ओमकारेश्वेर धाम जैसा पावन तीर्थ स्थल। जहाँ पर मन को आत्मीय शांति मिलती है। रुद्रप्रयाग जिले मे पांचो केदार यथा केदार नाथ, मध्यमेश्वर, तुंगनाथ, रूद्रनाथ और कल्पेश्वर के एक साथ दर्शन के सौभाग्य प्राप्त होते हैं। अब हम आपको लिए चलते हैं, चोपता। जिसे मिनी स्विटजरलैंड भी कहा जाता है।
पंचकेदार मे सबसे ऊँचे ट्रैक चंद्रशिला ट्रैक आगंतुकों के लिए बहुत ही अद्भुत और आनंददायक जगह है। और हाँ, यहीं पर आप कस्तुरी मृग के भी दर्शन कर सकते हैं। इसके साथ साथ बर्फ की चादर पर स्कीइंग का आनंद भी ले सकते है।
बद्रीनाथ धाम मंदिर की यात्रा
जोशीमठ से 45 किलोमीटर की दुरी पर खुबसुरत पर्यटन स्थल है, बद्रीनाथ। यहां से महज 14 किलोमीटर की दुरी पर विश्वप्रसिद्ध स्कीईंग स्थल ओली है। यहां पर पहुँचने के लिए लगभग 4 किलोमीटर लम्बा रोपवे को पार करना पड़ता है, जो घने देवदार के पेड़ों के ऊपर से होकर गुजरता है। गौरसों बुग्याल के क्या कहने हैं, यहां आये हैं तो जाना न भूलें।
बद्रीनाथ धाम मे ही शेषनेत्र झील और बद्रीश झील है, इसके पास बैठकर कुछ सुकून के पल अवश्य गुजारें। यहां पर देवी उर्वशी और भगवान नारायण की जन्म स्थली है। लिलाधुनि के दर्शन आपकी यात्रा को चारचांद लगा देंगे। इसी बद्रीनाथ धाम से आगे 3 किलोमीटर की दुरी पर चीन की सिमा और देश का प्रथम गॉँव माणा बसा हुआ है।
माणा मे भोटिया जनजातियों के द्वारा अपनी आजीविका के लिए भेड़ का पालन किया जाता है। ओसधिय जड़ी बूटियां बहुतायत मात्रा मे मिलती है। हथकरघा उद्योग और उससे बने पारम्परिक वस्त्र तथा परिधान दुनिया भर के पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करते हैं।
शीतकाल मे यहाँ की कन्याओं के द्वारा तैयार किये गए कम्बल को भगवान बद्रीनारायण को चढाने की परम्परा है।
भीमपुल
महाभारत कालीन भीम पुल की मान्यता है, कि जब पांडव इस गाँव से होते हुए स्वर्ग जा रहे थे, तो रास्ते मे सरस्वती नदी पार करने के लिए भीम ने बड़ी बड़ी चट्टान को उठाकर नदी के ऊपर रखकर आगे का रास्ता बनाया था।
वसुधारा
माणा गाँव से 8 किलोमीटर की दुरी पर 122 मीटर ऊँचा जलप्रपात वसुधारा है। इस प्रपात से उठते हुए फेन के छींटे जब तन पर पड़ते हैं, तो तन मे शीतलता आती है, और ऐसा लगता है, मानो पुरे सफर की थकान क्षणभर मे उड़नछू हो गयी।
गणेश गुफा
माणा गाँव के निवासियों का मानना है, कि यहां पर स्थित गणेश गुफा मे ही भगवान गणेश ने वेदव्यास से सुनकर महाभारत का लेखन कार्य संपन्न किया था। इसके अतिरिक्त व्यास गुफा और भृगु गुफा भी मौजूद हैं।
मौसम का बदलता मिजाज
अब बात करते हैं, सुरक्षा की, यहां के मौसम की बात ही निराली है। पल भर मे मौसम का मिजाज बदलता रहता है, कभी धुप तो कभी छांव और देखते ही देखते हिमवर्षा फिर भूस्खलन ।
आप जब भी इन जगहों पर यात्रा के लिए आएं अपने साथ प्राथमिक उपचार की चीजों को जरूर साथ रखें। अपने साथ गर्म कपडे, दवाइयां, शॉल और चादर इत्यादि जरूर रखें।
पारम्परिक व्यंजनों का लजीज स्वाद
यहां पर रहने वाले स्थानीय पहाड़ी लोगों और जनजातियों के द्वारा पहाड़ों की ढलान पर उगने वाले मंडुए की रोटी उसके साथ हरा नमक, तिल और भांग की चटनी का स्वाद आपका दिल जीत लेगी। पहाड़ी राजमा, उड़द और कुल्थ जो की पहाड़ों की ढलानों पर उगाये जाते हैं। इससे बनाये हुए लजीज और चटकदार व्यंजन के स्वाद के क्या कहने।
झंझोरे की खीर और भात अरबी के पत्ते की रसदार ग्रेवी, भरवां पराठे जैसे पारम्परिक व्यंजनों के स्वाद को हाथ चाटते रह जायेंगे। ये सभी लजीज व्यंजन यहां के स्थानीय लोगों के द्वारा बनाये और पर्यटकों को परोसे जाते हैं।
यहां के भोजन को खाकर आपका भी मन गदगद हो जायेगा और आप बेशक बोल उठेंगे – लाजबाब। मान्यवर , यह यात्रा ब्लॉग आपको कैसा लगा इसकी जानकारी हम तक जरूर पहुचायें। आपकी प्रतिक्रिया का हम स्वागत करते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
चार धाम कहाँ स्थित है ?
चार धाम तीर्थयात्रा स्थल हिमालय की ऊँचाई पर चार पवित्र स्थलों – यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ है।
चारधाम की यात्रा कहाँ से शुरू होती है ?
चार धाम की पवित्र यात्रा उत्तरकाशी के यमुनोत्री से शुरू होती है और गंगोत्री तक जाती है। इस यात्रा का तीसरा गंतव्य स्थल रुद्रप्रयाग जिले के केदारनाथ मंदिर है। अंतिम गंतव्य स्थल चमोली जिले में स्थित बद्रीनाथ धाम पर जाकर यह यात्रा सम्पूर्ण होती है जिसकी कुल दुरी 1607 किलोमीटर है।
चारधाम यात्रा में कौन-कौन से मंदिर है ?
चारधाम यात्रा में बद्रीनाथ, पूरी, द्वारका और रामेश्वरम शामिल है जिसे चारधाम के नाम से जाना जाता है। इन मंदिरों की यात्रा प्रत्येक हिन्दू को अपने जीवन काल में कम से कम एक बार जरूर करनी चाहिए। चारधाम की यात्रा का शुरुआती बिंदु हरिद्वार है जहाँ से तीर्थयात्री इन चारों पवित्र स्थलों की यात्रा करते है।
चार धाम यात्रा कितने दिन में पूरी करनी होती है ?
चार धाम की यात्रा (केदारनाथ, पुरी, रामेश्वरम, बद्रीनाथ) IRCTC के द्वारा डीलक्स एसी टूरिष्ट ट्रैन द्वारा कराई जाएगी। यह 17 दिन और 16 रात का पैकेज होता है, जिसकी शुरुआत हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से होगी और दिल्ली रेलवे स्टेशन पर जा कर खत्म होगी। इस पैकेज के माध्यम से कुल 204 लोग चारधाम की यात्रा के लिए टिकट बुक्किंग करा सकते है।
चार धाम यात्रा करने से क्या होता है ?
हिन्दू परम्परा के अनुसार तीर्थयात्रियों का मानना है कि चार धाम की यात्रा करने से सभी पाप धूल जाते है और मोक्ष के द्वार खुल जाते है। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन काल में एक जरूर इन चार पवित्र स्थानों की यात्रा अवश्य करनी चाहिए।